बुधवार, 5 मार्च 2014

स्कूली शिक्षा के प्रयोग अभी भी बौने"

27 मार्च २०१४ को अलीगढ से बैजोई (उत्तरप्रदेश) की यात्रा ट्रेन की जनरल बोगी में कर रहा। ज़बरदस्त भीड़ के बीच खड़ा हो पाना भी चुनौती की तरह था, जैसे - तैसे बाथरूम के पास गैलरी में जगह बना पाया। उसी जगह एक अधेड़ उम्र सख्श फटे हाल कपड़ों के लिबाज़ में घुटनों के बल बैठा अपने मोबाईल पर गाने सुनने में मशगूल था।मैं बाथरूम से आ रही बदबू को भूल मोबाईल पर उसकी दक्षता को निहारने लगा तो वह मुस्कराते हुए "साहब पढ़े -लिखे तो है नहीं टाइम पास करने का यही तरीका है" आपको कोई दिक्कत तो नहीं है। मैंने कहा नहीं। मैं लगातार यह सोचता रहा आखिर शिक्षा पर अपनायी जा रही गतिविधियां कब इस तरह की टेकनोलॉजी के समकक्ष पहुँच पायेगी।       

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